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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?


आत्मबल प्रायः स्वाभाविक होता है। वे मनुष्य धन्य हैं, जिनमें जन्मसे ही आत्मबल विद्यमान है। वास्तवमें हमारे माता-पिता, वातावरण एवं संस्कारोंका आत्मबलपर बड़ा प्रभाव पड़ता है। हिम्मत बढ़ानेवाले, निरन्तर प्रोत्साहनके वातावरणमें रहनेके कारण कुछ बालक स्वतः दूसरोंकी अपेक्षा आत्मबलमें बढ़े-चढ़े होते हैं। ईश्वरके कृपाबलका भरोसा रखनेवाले व्यक्तियोंमें हिम्मत स्वतः ही बढ़ जाती है।

आत्मबल बढ़ाया भी जा सकता है। अन्य शक्तियोंकी भांति इसका भी विकास होता है। जो व्यक्ति आत्मबलके विकासका नियम जानता है, वह दीर्घकालीन अभ्याससे इसे विकसित कर सकता है। आवश्यकता है केवल उत्कट, बलवती इच्छा (Burning desire) की। यह इच्छा साधारण-सी मनकी हलकी-झकोर

नहीं होनी चाहिये। हृदय-सरोवरमें तनिक-तनिक देर छोटी-मोटी लहरोंकी तरह जो आलोडन-विलोडन होता है, उससे काम नहीं चलेगा, आपके मनमें जीती-जागती बलवती इच्छा होनी चाहिये।

आत्मबलके विकासका प्रथम तत्त्व है-अनुसंधान। अनुसंधानसे तात्पर्य है अपने पक्ष, नीति या दृष्टिकोणविषयक सत्यताका ज्ञान। आप जिस कार्यको सम्पन्न करने चले हैं, क्या वह उचित है; मर्यादाके भीतर है? अन्य विद्वान् उसके बारेमें क्या कहते हैं? इत्यादि अनेक प्रश्रोंद्वारा आप अपने पक्षका अनुसंधान अर्थात् पर्याप्त खोज-बीन करें। सत्यको मालूम करें। दूसरा सोपान है खोज-बीनसे अर्जित सत्यके प्रतिपालनमें दृढ़ता। स्मरण रखिये, जिसका पक्ष सत्यका पक्ष है, उसमें ईश्वरत्वकी मजबूती है। ईश्वर उस व्यक्तिके साथ है। दैवी सहायता निरन्तर उसके समीप चलती रहती है। जिनके अन्तःकरण शुद्ध है, उनके द्वारा सत्य-पथपर दृढ़तासे चलना आत्मबल बढ़ानेवाला है। साधारण व्यक्ति भी सत्यके पथको पकड़कर दृढ़तासे चलता रहे, तो आत्मबलकी अभिवृद्धि कर सकता है।

विकासके मार्गमें दो शत्रु आते है, जिनसे बड़े सावधान रहनेकी आवश्यकता है-(१) प्रलोभन, (२) आलस्य। नाना रूप धारणकर प्रलोभन आपको धर दबायेंगे, किंतु आपको उनके मायामोहमें नहीं फँसना है। मन आलस्यके वशीभूत हो सरलताके मार्गपर चलनेका आग्रह करता है। उसे इस आलस्यसे रोकना, पुनः-पुनः इष्ट मार्गपर लगाना आत्मबल-वृद्धिका उपाय है।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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